प्रिय मित्रों, कई बार हम सोचते कुछ हैं और हो कुछ जाता है। कुछ समय से मैं सोच रही थी कि इस बार post में मैं क्या लिखूं.. कुछ अलग, कुछ अच्छा जिससे आप सब को जीवन और आत्मा का अनुभव हो। मैं तो हमेशा कुछ अध्यात्म के विषय पर ही लिखना चाहती हूँ। अचानक मुझे कुछ ऐसा मिला जिसे मैं आप सब से साझा करने से अपने को रोक नही पाई। तो प्रस्तुत है..
“शक्कर” को जल में घोल दो तो जल मीठा हो जाता है और दूध में घोल दो तो दूध मीठा हो जाता है, शक्कर हर चीज़ को मीठा करती है लेकिन “शक्कर” में क्या घोल कर उसे मीठा किया जाए?
“आत्मा” के “प्रकाश” से “बुद्धि” प्रकाशित होती है, बुद्धि से मन प्रकाशित होता है, मन से इन्द्रियां और इन्द्रियों से उनके साधन प्रकाशित होते हैं”
“आत्मा” सबको प्रकाशित करती है लेकिन आत्मा को कैसे प्रकाशित किया जाए?
जैसा कि भगवान ने कहा है
इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः।
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः।
अर्थात – (शरीर से) परे (श्रेष्ठ) इन्द्रियाँ कही जाती हैं; इन्द्रियों से परे मन है और मन से परे बुद्धि है, और जो बुद्धि से भी परे है, वह है आत्मा।
शरीर का आभास कैसे होता है? इन्द्रियों द्वारा, इंद्रियां शरीर की द्रष्टा हैं
इन्द्रियों का आभास कैसे होता है? आंखे देख रही हैं, कान सुन रहे हैं- यह कैसे ज्ञात होता है? मन द्वारा, मन इन्द्रियों का द्रष्टा है
मन का आभास कैसे होता है? मन खुश है, बेचैन है, दुखी है– यह कैसे ज्ञात होता है? बुद्धि द्वारा, बुद्धि मन की द्रष्टा है
बुद्धि का आभास कैसे होता है? क्या विचार चल रहा है- यह कैसे ज्ञात होता है? “आत्मा” द्वारा, आत्मा बुद्धि का द्रष्टा है
आत्मा का आभास क्यों नहीं होता? क्योंकि आत्मा के पीछे कोई द्रष्टा नही है, आत्मा ही परम् द्रष्टा है, हम स्वयं आत्मा हैं, परम् द्रष्टा हैं, सचिदानंद हैं।
जय श्री कृष्ण 🙏
Comments & Discussion
10 COMMENTS
Please login to read members' comments and participate in the discussion.