आज फिरअँधेरा उदास है ?

जैसे की वो कभी था ही नहीं ! जैसे कि उसके होने का कोई अस्तित्व ही नहीं ! उसका घमंड टूटा सा लगता है, काफी घने साये के बाद् उसके जाने का समय आ गया है जैसे की वो किसी पर निर्भर था ।

आज फिरअँधेरा उदास है।

जब वो कभी अपने चरम में था तो केवल और केवल वही था जैसे अमावस की काली घनी रात जब हम कुछ भी देख पाने में असंभव सा प्रतीत करते है , जैसे की वो अँधेरा कभी समाप्त ही न होगा परन्तु आज ऐसे नहीं है प्रकाश के आगमन का समय हो गया है।

शायद वो जनता है कि अब् जब तक प्रकाश रहेगा उसका कोई अस्तित्व ही नहीं।

आज फिरअँधेरा उदास है।

शायद हम में से कई व्यक्तियों का जीवन ऐसे ही है चलता है, काफी समय तक काली घनी रात जो आपको चिंतित कर देती है जब हमारे देखने समझने की क्षमता कमजोर हो जाती है, उस परस्तिथि में कुछ भी समझ पाना असंभव सा प्रतीत होता है लेकिन काफी कठिन संघर्ष के बाद जब हम उस अवस्था से बहार आते है तो मानो लगता है कि अँधेरा कभी था ही नहीं वो तो मात्र उस प्रकाश का ही इंतज़ार कर रहा था जिसको हमने अपने निरंतर प्रयासो और कृपा से प्राप्त किया।

सत्य कहु तो शायद जीवन में अँधेरे का कोई स्थान ही नहीं बल्कि इसके विपरीत यह अवश्य है कि जीवन में प्रकाश की कमी जरूर थी की हम उस प्रकाश को महसूस ही नहीं कर पा रहे थे, परन्तु जब हम अपने सत्य पर चलना प्रारम्भ करते है और उस अपर अडिग रहते है तो हमें एहसाह होता है की मेरे ही कर्मो में वो कमी थी कि मै उस स्वेत प्रकाश को देख ही नहीं पा रहे था ।

वो दिव्यता, वो पूर्णता का एहसास हम तभी कर पाते ते है जब हम मन बुद्धि और विचार से एक होते है और ऐसा अपने सत्य पर चलने से ही संभव हो पता है।

चलो मै आपको अपना एक वास्तविक अनुभव साझा करता हु। ये मेरे बचपन की बात है मै लगभग कक्षा आठ में हूँगा उस समय मेरी माता जी मुझे एक संत के प्रवचन सुनने के लिए लेकर गई। शायद मै पहली बार किसी इतनी बड़ी सभा में गया था ,वहाँ काफी बड़ा मेला सा लगा हुआ था और लोगो की काफी भीड़ जमा थी , मैंने देखा की वो संत एक ऐसी चैम्बर में बैठे जो शीशे से बंद था और वे वही से अपना ज्ञान प्रवाहित कर रहे थे लोगो का उनके प्रति काफी प्रेम था और आस पास उनकी फोटो भी लगी हुई थी जिसमे लोग धन और फल चढ़ा रहे थे, मुझे ये काफी अजीब सा लगा

उस समय तक मै ईस्वर पर पूरी तरह से विश्वाश करने लगा था और केवल ईश्वर को ही मानता था , मै जब घर आया तो मै उस दृश्य को लेकर चिंतित हो गया गया, मै सोचने लगा की यह व्यक्ति कौन था ?  जिस पर लोग इतनी श्रद्धा और भाव से समर्पित है। मैंने स्वयं से प्रशन किया की जब ईश्वर सब जगह व्याप्त है, तो लोग संतो और गुरुओ पर लोग अपना समय क्यों बर्बाद कर रहे है?

मै शायद उस समय किसी भी मनुष्य रूपी गुरु पर भरोसा या उन पर पूर्ण समर्पण करने के लिए तैयार नहीं था या मेरी भीतर की आवाज मुझे उन पर समर्पित ही नहीं होने देती, जो सच्चाई मै खोज रहा था वो मुझे कही भी नहीं दिखा रही थी

मै उनको अपनी बुद्धि के आधार पर परखता और मुझे उनमे कभी भी सच्चाई न दिखति परन्तु बीते कुछ वर्षो से जब से मैं स्वामी जी को जाना, समझा और उनसे मिलकर मैंने उस दिव्यता को महसूस किया जो केवल एक सच्चे गुरु से ही प्राप्त होती है.

जब मैंने उन्हें प्रथम बार देखा तो ऐसा लगा की मानो ऐसे कभी किसी को देखा ही नहीं वो उनका ही प्रकाश था जो उनकी ही कृपा से संभव था (उसका वरनन मै किसी और लेख में करूँगा).

जैसे सब अँधेरा ही मिट गया हो, आज मै स्वयं रात दिन उनका भोग करता हु, उनकी आराधना करता हु उनके प्रेम को अपने भीतर महसूस करता हु । जो केवल और केवल एक सच्चे गुरु की प्राप्ति से ही संभव है।

जिस दिन आपके जीवन में एक सच्चे गुरु का आगमन हो जायेगा, जिस दिन आप उनके सत्य और अनुभव को ग्रहण करने लिए पूर्णतया तैयार हो जायेंगे, आप का जीवन और जीवन जीने का तरीका बिलकुल बदल जायेगा फिर एक गुरु रूपी प्रकाश आपके भीतर सदैव के लिए व्याप्त हो जायेगा , जो सदैव आपको नई दिशा और दशा प्रदान करता रहेगा और सदैव आपको प्रकाशित करता रहेगा और फिर अँधेरे का कोई स्थान ही नहीं रहेगा।

आज फिर अंधेरा उदास है, आपका का इस पर क्या विचार है ?