ना मैं ये हूँ ना मैं वो हूँ, तो कौन हूँ मैं,
मैं वो भी नहीं जो दिखता हूँ और मैं वो भी नहीं जो नहीं दिखता,
जो मैं हूँ और जिसे मैं जानता हूँ वो अब पराया सा लगता है,
और जो मैं नहीं हूँ, उसे मैं पहचान नहीं पाता,
कुछ अजनबी सा है पर लगता है कहीं कुछ गहरा जुड़ाव है जिसे समझना बहुत जरुरी है,
न समझा तो शायद समंदर की उन गहराइयों को न छू पाऊं जिसमे डूब जाना ही मेरी प्रकृति है,
डर है कही सतह पर ही बहता न रह जाऊं,
गर लहरों से लड़ता रहा तो थक कर चूर हो जाऊंगा और एक दिन इसी भंवर में फंस कर मेरा अस्तित्व ही नष्ट हो जाएगा,
कभी लगता है लड़ना छोड़ दूँ, भूल जाऊं जो मैंने सीखा और जो मुझे सिखाया, भूल जाऊं कि मैं कौन हूँ,
बस अपने आप को लहरों के हवाले कर दूँ,
या तो डूब जाऊंगा और गहराइयों के धरातल को पा जाऊंगा या फिर किसी किनारे तो पहुँच ही जाऊंगा