• आज  से शायद प्रेम उत्सव शुरू हो चुका है , वैसे तो प्रेम  का कोई  निश्चित समय   नही होता  ।प्रेमियों के लिए हर वक्त ही बसन्त होता है। जो प्रेम में हैं उन  सभी को मेरी ओर से अपार करुणा और भाव ,दुलार, और जो  विरह में हैं उन्हें  मेरी प्रेम तपस्या से सुकून के अंश 

तू भी चले  ,मैं भी  चलूँ,

तू भी हँसे ,मैं भी हँसू,

नेह ने तेरे प्रिये ,मुझमे जलाये सौ दिये,

सब कुछ यहीं पर छोड़कर,

हो जाऊं तेरा इस क्षण अभी।

कैसे  मेरी भावना के द्वंद को जाती समझ

फिर जतन से खींचकर,

मुझमे लुटाये प्रेम तू।

मेरी दुविधा, मेरा संशय,

तेरा दामन  मेरा आश्रय।

भर लूं  बाहों में तुझे, ईक पल को सबकुछ भूलकर,

तोड़ दूँ मैं द्वंद सारे दरमियां जो हों अगर।

दूरी नही ,दुविधा नही,

ईक प्रेम हो बस  दरमियां।

ईक साथ होकर के चलें,

किसी घाट के उस छोर पर,

बैठी जहाँ चुपचाप, देवी प्रेम की अम्बर तले।

मुझको निहारे तू कभी,तुझको निहारूँ मैं कभी,

बस प्रेम सरिता में बहें, ढूढें न कोई छोर फिर।

“तू भी चले, मैं भी चलूँ

तू भी हँसे, मैं भी हँसू”

#समर्पित#स्वामी#माँ