सादर नमस्कार। आज के पोस्ट में कुछ स्वरचित छोटी-छोटी कविताएं प्रस्तुत हैं। आशा है कि आपको पसंद आएंगी।

रात माँ है

रात माँ है
हमें सुलाने के लिये आती है
माँ की गोद में ,
मैं सो जाता था
एक बार मैं जगा
और जगता रहा
तब मैंने पाया कि
रात माँ है
स्वयं जगकर हमें सुलाती है।

पता नहीं है

झूठ मैं बोलूंगा नहीं,
सच मुझे पता नहीं है।

वो बनाकर मुझे छिप गया,
जिसका कुछ मुझे पता नहीं है।

उन्होंने मुझे पागल कहा, पागल
जिन्हें पागलों का कुछ पता नहीं है।

…writing…

रब

गलतियाँ कोई थोड़े ही रब करता है,
वो कुछ नहीं करता पर सब करता है।

इंसान को बाँटने को इंसान बना देते है,
वो थोड़े ही निर्माण मजहब करता है।

दो को मिलाना हो या दो सौ जुटाने हों
वो करने पर आता है तो गजब करता है।

हर पल वो चला रहा सागर में कश्ती हमारी,
कुछ लोग मुझे पूछते हैं, वो ये कब करता है।

प्रतीक्षा

मैं भँवर में हूँ
मन के, बनाये हुए,
मेरे ही, शहर में हूँ।
मेरी प्रतीक्षा करोगे!

वचन है मेरा,
जान लूंगा जब,
है क्या?
चमड़ी के भीतर,
समय से आगे,
बंधनों से मुक्त,
हाथ तुम्हारा थाम लूंगा।
पर उस क्षण तक क्या?
इस वचन की, रक्षा करोगे?

सीधी बात (लीक से हटकर)

मैंने बात सीधी कह दी
उसे उल्टी लगी,
मैंने कहा तुम बीमार हो
उसे मिर्ची लगी
समझाया उसे, वैद्य सुझाया उसे
किताबें बतायीं, कुछ न रास आया उसे
मेरी इन बातों में उसे केवल
मेरी पब्लिशिटी लगी।😂

अंत तक बने रहने के लिये धन्यवाद।

आदरणीय सज्जनों को सप्रेम नमन।

Image by Christine Sponchia from Pixabay