ये लगातार इस पोस्टर को क्यूं देखता रहता है?

“शायद उसपे बने साँप को निहार रहा हो”

“उसे बोलो जाए खेले नही तो ,बच्चा है रात को डरेगा” 

ये संवाद मेरी बुआ और मेरी दादी अम्मा के बीच चल रहा था,बचपन मे शायद जब मैं 7 या 8 साल का था। अचानक से मुझे इस पोस्टर की याद आयी जो मेरे गाँव के घर के हाल में लगा था। 

मम्मी ने कहा ,” दिनभर तू ई पोस्टर म का देखते हैए लाला।

😊😊😊

मैने कहा,”शंकर जी औ पार्वती मैया का मम्मी।

मम्मी- ‘काहे’ 

मैं- “अच्छा लागत है” 

मम्मी- ‘जा खेला बाहर नही रात म डेराबे फे रोये न😊😊😊😊

ये छोटी सी घटना है पर ,बहुत मीठी यादों में बसती है मेरे और जब-जब मैं इस पोस्टर को देखता हूँ ,मेरे दृष्टिपटल पर वो सारी स्मृतियां तरोताजा हो जाती है। 

तो मैं क्या देखता था…

मैं  शिव जी और माँ के स्वरूप को देखता था। बड़े मजे से, बड़े ही दोस्ताना अंदाज में। एक चीज आपने नोटिस की होगी किसी भी पोट्रेट को आप किसी भी साइड से देखो आपको लगेगा वो मुझे ही निहार रही है ,है कि नही☺☺

मैं जब पहले-पहल इस पोस्टर को देखता और दाएं-बाएं कर के देखता तो मुझे लगे ये दोनों मुझे देख कर हंस रहे है। बस इसी खेल में मैं दिन के कई वक्त यही करता। मेरे घर के लोग विशेषतः माँ, दादी, बुआ ये सब देख कर असहज होतीं।

“क्यों कि आप कहीं भी रहो माँ का ध्यान अपने बच्चों के ऊपर से कभी हटता ही नहीं,कैसे वो जान जातीं हैं कि आज मेरी लड़ाई हुई है बाहर ,मेरी हर इच्छा को जो मेंरे मन में रहती थी। सच मे माँ शब्द एक अक्षर का है पर पूरी सृष्टि है इसमें ❤❤❤ ……”कुपुत्रो जायेत ,क्वचिदपि कुमाता न भवति”

शुरू-शुरू में तो छवि ने आकर्षित किया फिर शिवत्व ने, जीवन आगे बढ़ता रहा शिशु से किशोर हुए फिर वयस्क पर ये छवि आज भी मन मे बराबर मुस्कुरा रही है।

बस एक नया परिवर्तन हुआ😃

यही की मुस्कुराने वालों में अब एक नई छवि ने जगह ले ली है।

परम् पूज्य स्वामी जी की 💐💐💐💐💐

हे मंगल मूर्ति💐💐

मैं सदा से अवगुणों में ही रहा मेरे पास अर्पित करने को केवल मलिनता है स्वीकार करें😢🌼🌼💐💐💐🌼❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤