ना कोई ख़्वाब है, ना कोई ख़लिश,
ना कोई उम्मीद है, ना कोई कशिश.

ना कोई काविश है, ना कोई कोशिश,
ना कोई गुज़ारिश है, ना कोई परस्तिश.

ना कोई रकीब है, ना कोई हबीब,
ना कोई रंज है, ना कोई रंजिश.

ना कोई सफ़र है, ना कोई मंज़िल,
ना कोई जुस्तजू है, ना कोई ख़्वाहिश.

ज़िन्दगी ख़ूबसूरत है, कोई सज़ा नहीं,
ना कोई यह सलीब है, ना कोई साज़िश.

ख़लिश : फ़िक्र, कशिश : आकर्षण, काविश : तलाश, परस्तिश : इबादत, रकीब : दुश्मन, हबीब : दोस्त, रंज : दुख, रंजिश : शत्रुता, जुस्तजू : खोज, सलीब : सूली.

~ संजय गार्गीश ~