My First poem on inspiration:
घोर अंधकार के बीच जल रहा दीपक प्रकाशित किरणो सा,
दे रहा संदेश अज्ञानता के बीच
कि हटना तेरा काम नही,जो हारे
वो सूर्य का नाम नहीं,
उठा किरणो का प्रकाश
स्तब्ध करदे ये जग सारा ।।
सूक्ष्म प्रकाश को आने दे,
संभावना को जाने दे,
डरता क्यों है,जलने से,तपने से,
अन्दर छुपी प्रतीभा उकेरने से,
इसे समस्या नही सामाधान मान,
इस अंत को आंरभ मान,
अंधकार को ही प्रकाश मान,
नकार में सकार मान।।
चंद अश्रुओ को बहने दे–मत रोक बहने दे,
प्रलय के बाद ही आयेगी शांती,
वेदित हृदय में मत ला सुकून भ्रांती,
झूकेगा नहीं उठेगा कैसे?
गीरेगा नहीं तो चलेगा कैसे?
“अ”,व “न”,को मिटाना इतना आसान नहीं,,.
परिश्रम जैसा दूसरा नाम नहीं।।
“हे!!अभिमन्यू:बिना चक्रव्यहू भेदे मत जा छोड़ के रण,,
इंतजार कर रही सृष्टी तुझे पुकारता इस का हर एक कण,,
मत छोड़ आशा देख तेरे भीतर आ रही है
पहली किरण।।।
“And Don’t ever let someone tell you that you can’t do something”
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