डीका …..गुड़िया की मृत्यु के बाद बहुत उदास रहने लगी थी, क्योंकि वह दोनों साथ-साथ खाते खेलते और सोते थे|

 

कुछ दिन बाद ही डीका बीमार हो गई ,और उसके सारे बाल झड़ गए व शरीर पर झुर्रियां पड़ गई ।अब वह एक ही स्थान पर बैठी रहती क्योंकि चलने से शरीर पर खिंचाव होने के कारण उसे बहुत पीड़ा होती थी।

 

पशु चिकित्सक को डीका की फोटो और वीडियो भेज कर उनकी सलाह पर सोलन से दवाइयां मंगाकर उपचार शुरू कर दिया गया। सुश्री दिया जी चिकित्सक के संपर्क में रहती|
ड़ीका का जीवित रहना मुश्किल लग रहा था ,परंतु हमने उम्मीद नहीं छोड़ी।(कहते हैं ना . “सांस है तो  आस है”|)मैं उसके शरीर पर मरहम लगाकर गरम शॉल में लपेट कर गोद में लेकर बैठी रहती |


कभी-कभी वह आंखें खोल कर मुझे देखती “सो जाओ मैं यहीं हूं” मेरे ऐसा कहने पर वह सुकून से आंखें बंद  कर लेती|
  श्री हरि भगवान की कृपा से 2 महीने में वह पूर्णता स्वस्थ हो गई|  अब  उसकी आंखों का रंग गहरा पीला हो गया व लंबाई बढ़ने और  टांगे छोटी रह जाने के कारण वह बहुत विचित्र और आकर्षक लगने लगी|

 

 5 जुलाई सुबह 7:30 बजे मेरे रोकने पर भी वह कमरे में जाने की जिद करती रही हमें तीन-चार दिन के लिए आश्रम से बाहर जाना था इसलिए मैंने उसको अंदर नहीं जाने दिया ,हालांकि जाने से पहले मैं उनके खाने-पीने और रहने का प्रबंध करके जाती| आश्रम से कुछ दूर जाने के बाद मुझे एहसास हुआ कि शायद डीका प्रसव पीड़ा के कारण रो रही थी। मुझे बहुत आत्मग्लानि और अपराध बोध हुआ| यदि मुझे पहले पता होता तो मैं अपना जाना रद्द कर देती। मैंने तुरंत दीपा जी को फोन किया कि डीका के खाने-पीने का विशेष ख्याल रखें| उसी दिन ड़ीका ने 3 बच्चों टिन्टी (भूरे रंग की),मिन्टी (सलेटी) और श्यामू सांवले रंग के बच्चों को जन्म दिया|


हमारे आश्रम लौटने पर कार की आवाज सुनकर वहअपने बच्चे को मुंह में दबाकर हमारे कमरे के सामने खड़ी हो गई ,और तीनों बच्चे हमारी बालकोनी में ले आई ।जहाँ उनके रहने की व्यवस्था पहले से थी।
एक दिन सुबह 4:30 बजे डीका के रोने की आवाज सुनकर मैंने बाहर जाकर देखा तो वहां मिन्टी नहीं थी| अंधेरा होने के कारण कुछ दिखाई नहीं दे रहा था मैंने पुकारा मिन्टी और उत्तर मिला म्याऊं| जितनी बार भी मैंने पुकारा मुझे म्याऊं उत्तर मिला, मैं समझ गई कि मिन्टी नीचे गिर गई है मैं तुरंत उसे लेने पहुंची तो मैंने देखा कि दो बड़ी-बड़ी आंखें चमक रही हैं जी हाँ …वह डीका थी ,जो मुझसे पहले वहां पहुंच कर मेरी प्रतीक्षा कर रही थी ,उसको समझ नहीं आ रहा था कि बच्चे को वापस कैसे लेकर जाए? मैंने मिन्टी को उठाया तो वह मुझसे ऐसे लिपट गयी जैसे बच्चा अपनी मां से..😍

 

16 सितंबर को टिन्टी,मिंटी लापता हो गए (अनुमान था कि कोई उनको अपने साथ ले गया) टिन्टी एक सप्ताह बाद वापस आ गई, अगले दिन डीका अपने दोनों बच्चों को लेकर चली गई|
8 अक्टूबर की रात (तीसरे नवरात्रि )12:00 बजे मुझे किसी के रोने की आवाज सुनाई दी मैंने दरवाजा खोला अरररे… श्यामू …।, रो-रो कर उसकी आवाज खराब हो गई थी।भूख से व्याकुल होने पर भी वह एक क्षण के लिए  मुझसे अलग नहीं हो रहा था। मैं रात भर उसको गोद में लेकर बैठी रही।


अगले दिन डीका भी वापस आ गई क्योंकि वह टिन्टी को खो चुकी थी| मिन्टी भी 26 दिन बाद वापस आ गई है। डीका अपने बच्चों को अब पहचानती नहीं , इसलिए उनके साथ नहीं रहती| यह थी ईना ,मीना ,डीका और गुड़िया का अब तक का सफर|


प्रत्येक जीव को अपने जीवन की परिस्थितियों का सामना स्वयं ही करना पड़ता है|
| दुख में मत घबराना बंदे ,यह जग दुख का मेला है|
चाहे भीड़ बहुत अंबर पर, उड़ना तुझे अकेला है|