जय श्री हरि:

सरोवर का किनारा है
कन्हाई निकट ही एक वृक्ष के समीप बैठे हैं
चारो ओर से गायों और पक्षियों ने घेर रखा है
मोर श्याम को एकटक निहार रहे हैं

सब कुछ शांत है पर
अंदर एक उत्सुकता है
पता नहीं कब श्याम वंशी को मुख में लगाएँगे
पता नहीं श्याम कब हमारी ओर देखेंगे

चन्द्रमा उदित हो रहा है
पर चाँदनी का रंग कुछ अलग है
नीलवर्ण शयमसुन्दर की आभा है
चारो तरफ एक शीतल तरंग है

श्याम की आँखें सच में कमल के समान हैं
और उनकी मुस्कान ने सबको स्तब्ध किया हुआ है
जैसे योगी का ध्यान उसकी श्वास पर है
हम सब का ध्यान कन्हाई पर है

पता नहीं समय कब बीता
पता नहीं श्याम ने बंसी बजायी भी या नहीं
उनके चरणों को देखकर
उनके शीर्ष पर मयूर पंख को देखकर

मन में एक ही प्रश्न रह गया
क्या मेरे श्यामसुंदर से भी
अधिक और कोई सुन्दर है?
क्या इनके चरणों से बड़ा
और कोई दूसरा आश्रय है?
क्या इनके नेत्रों से अधिक कोई
और मोहित कर सकता है?

शीघ्र ही कोलाहल हुआ
और आँख खुल गयी
मंदिर में जयकारे का शोर हुआ
और फिर एक बार ‘अमित’ उनसे दूर हुआ

यह ‘अमित’ की एक काल्पनिक रचना है। आशा करता हूँ आपको मेरी यह त्रुटिपूर्ण कविता अच्छी लगी हो ।