ओम नमो भगवते वासुदेवायः

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥४-७॥

श्रीमद भगवद्गीता हमारा परम पावन व प्राचीन ग्रन्थ है। महाभारत में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया था उसे ही भगवद्गीता के रूप में जाना जाता है। लगभग १५०० वर्ष पूर्व जगद्गुरु आदि शंकराचार्य जी ने इन्हे महाभारत से निकाल कर एक अलग ग्रंथ का स्वरूप दिया तथा श्रीमद भगवद गीता का नाम दिया। तत्पश्चात इनकी व्याख्या बहुत से महापुरुषों ने अपने-अपने समय में अपने-अपने ढंग से की है।

श्रीमद भगवद गीता मानव जीवन की परिभाषा तथा सार हैं। इनको जितना पढ़ा जाए, उतना ही नया-नया अर्थ निकलता है। ये सभी के जीवन से जुड़ी हुई हैं । यदि ध्यान से पढ़ा जाए, तो जीवन की सारी सच्चाइयों और कठिनाइयों का हल हमको इनमें मिल सकता है।

कभी-कभी हमें विचार आते हैं कि हम कौन हैं? कहाँ से आते हैं? मरने के बाद हम कहाँ जाते हैं? इत्यादि। श्रीमद भगवतगीता में ना केवल इन का उत्तर है, अपितु हमारे समस्त प्रश्न भी इनमे समाहित हैं। 

जब से मुझे जीवन की गति समझ आने लगी, तभी से गीताजी मुझे आकर्षित करती रही हैं। टीवी पर महाभारत सीरियल आता था, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण गीता सुनाते थे और मैं बड़ी रुची से सुनती थी। उस समय ज्यादा समझ नहीं आता था परन्तु बहुत अच्छा लगता था। बड़े होने पर घर-गृहस्थी में लग गई। अब जीवन के उत्तरार्ध में समय मिला, तो सोचा क्यों न गीताजी पढ़ीं जाए? कोशीश तो पहले भी बहुत की, पर समय के अभाव के कारण संभव नहीं हो पाया। उस समय यह कठिन भी बहुत लगी, परन्तु अब मैं संस्कृत भाषा में ही गीताजी को सीख रही हूँ, और साथ ही जीवन में उतार भी रही हूँ। मुझे बहुत कुछ सीखने को मिल रहा है, कई प्रश्नों के उत्तर भी मिले हैं, जो पहले मालूम नहीं थे।

वैसे तो श्रीमद भगवद गीता की प्रत्येक बात प्रभावशाली है, किंन्तु एक बात से मैं बहुत प्रभावित हूँ और वो ये कि ये स्वयं भगवान के श्रीमुख से उद्धृत हुई हैं। सोचिए कितने सौभाग्यशाली हैं हम जो भगवान के श्रीमुख से निकले हुए वचनों को पढ़ रहे हैं, सुन रहे हैं । ये सोचकर ही मैं बहुत रोमांचित हो जाती हूँ। इनके हर शब्द, हर वाक्य, हर श्लोक से मुझे बेहद प्यार है और यकीन मानिये, गीताजी पढ़ते समय इतनी श्रद्धा और भावनात्मक भाव आते हैं कि मैं हर शब्द को नमन करके ही आगे बढ़ती हूँ।

जीवन में बहुत से उतार-चढ़ाव और कठिन परिस्थितियां भी देखी हैं। तब मैं सोचती थी कि क्या इन सब समस्याओं का हल है भी? गीताजी को पढ़कर जीने का बहुत हौसला मिला। मुझे आशा है कि आप सब इससे प्रेरणा लेंगे और गीताजी को स्वयं पढ़ेंगे और अपने जीवन में उतारेंगे।

मैं प्रयास करूँगी कि आगे आने वाले पोस्ट में आप सभी को गीता जी के मूल की एक झलक दिखलाऊँ। धन्यवाद।