आज तो हद हो गई.  शब्दों ने अपना अर्थ ही खो दिया है. इतनी मेहनत से लिखे गए होंगे वह सारे blogs जो मेरे लिए अर्थहीन हो गए हैं. और तो और आज का editorial भी मानो सिर के ऊपर से गुजऱ  गया हो. जब ऐसा हुआ तो दिमाग़ की घंटी बजी. एक नया moment ऑफ़ epiphany महसूस हुआ. महसूस हुआ student life में उन दिमागों का दर्द जो बार  बार,  बार बार physics या chemistry के या कोई और lessons पढ़ते, class में भी, tuition में भी, घर में भी, लेकिन फिर भी शायद समझ नहीं पाते और exam में हो जाते फेल. Maths भी कुछ ऐसे ही गोल गोल घुमा देता है कुछ को. 

आज मुझे भी अंदर में महसूस हो रहा है कि वाकई दिमाग़ की बनावट बहुत  प्रकार की होती है. और या तो समय  के साथ साथ  या कभी  कभी  किसी चोट  या तो सदमे  से हमारी समझ बदल जाती है.  इन दिनों मुझे ऐसा  first hand महसूस हो रहा है  कि बुढ़ापा कैसे धीरे धीरे अपने पाँव पसारता है.

मुझे समझ आना बहुत कम हो चुका है. पिछले कई दिन से मैं os. me पर posts पढ़ती तो हूँ लेकिन समझ कुछ कम ही आता  है. मैं अपने comments में बस   😊😊     या ❤❤❤   या 🙏🙏🙏    ज़्यादा  use करने लगी हूँ. पता नहीं क्यों कोई sentence ही नहीं बनता दिमाग़ में share करने के लिए. ऐसा अक्सर होने लगा है.

कहाँ  तो चले थे creative बनने. और  कहाँ posts  पर comments तक लिखना भारी पड़ रहा है. Memory पहले ही महान थी  और अब तो और  speed से  कम होती जा रही  है. 

शायद इसे ही बुढ़ापा कहते हैं 😊😊😊

HAPPY OLD AGE TO ME🥱🥱🥱🥱

Thank you so much to the few compassionate souls who still read my content less  words here.

I will be trying to report back as a better version of myself, though 🤗🤗

 Please be ware of Old Age symptoms 😛😛

       JAI    SHRI     HARI