ज़िन्दगी का रोलर कोस्टर कभी रुकता नहीं, और सबसे खास बात यह है कि, इसमें आपकी चीख उल्लास से भरी, आश्चर्य वाली नहीं होती बल्कि एकदम वास्तविक वेदना से भरी हुई होती है । आज लगभग दो साल बाद वापस घर से दूर मगध की राजधानी पाटलिपुत्र आना हुआ वही पाटलिपुत्र जहाँ का स्वर्णिम इतिहास हमारे भारतीय कलेवर में शौर्य, आध्यात्म और संस्कृत का चोखा रंग लगाए हुए है । महापद्म नन्द के अपार वैभव और अहंकार के विनाश से लेकर चन्द्रगुप्त के अखंड भारत सृजन का दिवास्वप्न साकार होने तक, चक्रवर्ती अशोक के भिक्षु अशोक बनने तक, आम्रपाली के नगर वधु से बुद्ध की शिष्या होने तक की दीर्ध यात्रा दृष्टि पटल में एक ही झलक में उतर आई पटना की धरती पर उतरते ही इन सभी शूरमाओं का सूक्ष्म एहसास मुझे स्पर्श कर गया। बुद्ध के आर्य सत्य ,धम्म की शरण और संघ की एकता ने मुझे अपने सीने में भर लिया मैं किसी शिशु की भाँति लिपट कर उस अथाह वात्सल्य में डूब गया । मगही, भोजपुरी लोकभाषा की गुलकतरी भरी ज़बानों ने बड़े आदर और प्रेम से स्वागत केिया  मैं अंततः अपने डेरे में पंहुचा । 
मेरी प्रकृति “प्रकृतिप्रेमी” है और प्रकृति के मूल स्वरुप उसके विशुद्ध विराट रूप में ही  मैं स्वच्छंद रह पाता हुु ,संकीर्णता में मेरा दम घुटता है, जटिलता अक्सर मेरे मानस पर ग्रहण लगाया करती है इसीलिए मैं इन दो राहु केतुओ से भागा करता हु। जटिलता, संकीर्णता और शोर दुर्भाग्य से मेट्रोपॉलिटन शहरो में ये त्रिगुण खूब फलते-फूलते आये हैं । मैं यात्रा की थकान मिटाने और खुली हवा खाने के लिए छत पे आ गया ,साँझ का वक्त था अक्सर ही साँझ देखना बहुत सुखदाई होता है । सभी कलाहृदयी जनो को साँझ  देखना अवश्य ही पसंद होगा। शाम में प्रकृति माँ क्षितिज में उतरती है ।

   श्री ललितासहस्रनाम में माँ का जो स्वरुप बताया गया है, साँझ की बेला में क्षितिज में इसे स्पष्ट रूप में देखा जा सकता है।

“सिन्दूरारूणविग्रहाम त्रिनयनाम माणिक्य मौलिस्फुरत”

सारा क्षितिज सिन्दूरी ही तो रहता हैै ,विराट सिन्दूरी विग्रह उसमे से उदयाचल/अस्ताचल का रवि और आसमान में एक ओर चन्द्रमा ये सब माँ के स्वरुप का ही तो जीवंत साक्ष्य हैै…….

जारी है….😊