16 सिद्धियाँ की जानकारी..

जय श्री हरि ।

आशा करता हु कि आप सब अच्छे होंगे और साधना के पथ पर पूरी तन्मयता से अग्रसर होंगे । दोस्तों जब भी साधना कि बात कि जाय तो सिद्धि का ज़िक्र अक्सर चल पड़ता है । अभी स्वामी जी की असीम कृपा से साधना का पथ कितना सुगम हो चुका है । स्वामी जी की इतनी अपार कृपा है कि आज यदि आप के पास अपनी व्यस्त ज़िन्दगी से निकल कर बाहर जा कर साधना का समय नहीं है तो भी आप घर बैठे ही अपनी साधना को आगे बड़ा सकते है । जी हाँ,  वो है साधना एप्प , जिसके माध्यम से आप घर बैठे ही अतिरिक्त राशि को खर्च किये बिना अपनी साधना को सुगमता से  आगे बड़ा सकते है । कितना उपकार है न यह हम सब पर हमारे प्यारे स्वामी जी का ।

दोस्तों सिद्धि का शाब्दिक अर्थ है – ‘पूर्णता’, ‘प्राप्ति’ या सफलता । अक्सर जिस कार्य के लिए जब साधना कि जाय और उस कार्य का उद्देश्य जब प्राप्त हो जाए तब उसे सिद्धि कि संज्ञा दी जाती है । सांख्याकारिका तथा तत्व समास में इसका विशिष्ट अर्थ है :- चमत्कारिक साधनों द्वारा आलोकिक शक्तियों का अर्जन । स्वामी जी अक्सर कहते है कि जब भी साधना करनी है को केवल माँ से या श्री हरि से ‘GRACE’ यानि ‘अनुग्रह’ ही मांगे, जब माँ का अनुग्रह प्राप्त होगा तो फिर किसी और प्रकार कि सिद्धि की ज़रुरत ही नही पड़ेगी । यहाँ सिद्धियो कि जानकारी केवल सामान्य ज्ञान के उद्देश्य से दी जा रही है । योग में सिद्धि आलोकिक शक्ति है जो अभ्यास को गहरा करने से विकसित होती है । 64 छोटी सिद्धिया है और 8 विशेष सिद्धियाँ है ।इन्हें अष्ट सिद्धि कहते है, यह अष्ट सिद्धि है :

  • अणिमा (किसी को दिखाई न देना ) ,
  • महिमा (अपने को बहुत बड़ा बना लेना ) ,
  • गरिमा (जितना चाहे भारी बना लेना ),
  • लघिमा (जितना चाहे उतना हल्का बना लेना ) ,
  • प्राप्ति ( इच्छित पदार्थ की प्राप्ति ),
  • प्राकाम्य (पृथ्वी में समा जाना या आकाश में उड़ना ),
  • ईशित्व (सब पर शाशन का सामर्थ्य हो जाए ),
  • वशित्व (दुसरो को वश में किया जाय ) ।

सिद्धिया अनैच्छिक रूप से होती है चाहे आप इने चाहे या न चाहे । आत्म ज्ञान के लिए सिद्धि कि आवश्यकता नहीं होती और आत्म ज्ञानी इनकी सदा उपेक्षा करता है क्योंकि एक आदर्श अभ्यास में सिद्धियों का पर्दर्शन निरुत्साहित किया जाता है क्योंकि उन्हें ध्यान भटकाने वाला माना जाता है । पतंजली योग सूत्र में भी महाऋषि पतंजली जी ने कहा है :- ” जन्म औषधि मंत्र तप: समाधिजा: सिद्ध्य :” (जन्म से , औषधि से , मंत्र से, तप से  और समाधि से सिद्धियाँ प्राप्त की जा सकती है )।  भगवत पुराण में भगवान कृष्ण ने दस गौण सिद्धियों का वर्णन किया है :

  • अनुमिर्म्त्वं
  • दूर्श्र्वं
  • दूरदर्शनं
  • मनोजवं
  • कामरूपं
  • पर्कायापर्वेश्नम
  • स्वछंद मृत्यु
  • देवाना सह क्रीडा अनुदर्शनं
  • यथासंकल्प्सिद्धि
  • आज्ञा अप्रतिहता गति :

16 प्रकार की सिद्धियाँ :

 1. वाक् सिद्धि : 

जो भी वचन बोले जाए वे व्यवहार में पूर्ण हो, वह वचन कभी व्यर्थ न जाये, प्रत्येक शब्द का महत्वपूर्ण अर्थ हो, वाक् सिद्धि युक्त व्यक्ति में श्राप अरु वरदान देने की क्षमता होती हैं ।

 2. दिव्य दृष्टि सिद्धि:

दिव्यदृष्टि का तात्पर्य हैं कि जिस व्यक्ति के सम्बन्ध में भी चिन्तन किया जाये, उसका भूत, भविष्य और वर्तमान एकदम सामने आ जाये, आगे क्या कार्य करना हैं, कौन सी घटनाएं घटित होने वाली हैं, इसका ज्ञान होने पर व्यक्ति दिव्यदृष्टियुक्त महापुरुष बन जाता है ।

 3. प्रज्ञा सिद्धि : 

प्रज्ञा का तात्पर्य यह हें की मेधा अर्थात स्मरणशक्ति, बुद्धि, ज्ञान इत्यादि! ज्ञान के सम्बंधित सारे विषयों को जो अपनी बुद्धि में समेट लेता हें वह प्रज्ञावान कहलाता हें ।

4. दूरश्रवण सिद्धि :

इसका तात्पर्य यह हैं की भूतकाल में घटित कोई भी घटना, वार्तालाप को पुनः सुनने की क्षमता ।

 5. जलगमन सिद्धि:-

यह सिद्धि निश्चय ही महत्वपूर्ण हैं, इस सिद्धि को प्राप्त योगी जल, नदी, समुद्र पर इस तरह विचरण करता हैं मानों धरती पर चल रहा हो ।

6. वायुगमन सिद्धि :-

इसका तात्पर्य हैं अपने शरीर को सूक्ष्मरूप में परिवर्तित कर एक लोक से दूसरे लोक में गमन कर सकता हैं, एक स्थान से दूसरे स्थान पर सहज तत्काल जा सकता हैं ।

 7. अदृश्यकरण सिद्धि:-

अपने स्थूलशरीर को सूक्ष्मरूप में परिवर्तित कर अपने आप को अदृश्य कर देना ।  जिससे स्वयं की इच्छा बिना दूसरा उसे देख ही नहीं पाता हैं ।

 8. विषोका सिद्धि :

इसका तात्पर्य हैं कि अनेक रूपों में अपने आपको परिवर्तित कर लेना ।  एक स्थान पर अलग रूप हैं, दूसरे स्थान पर अलग रूप हैं ।

9. देवक्रियानुदर्शन सिद्धि :-

इस क्रिया का पूर्ण ज्ञान होने पर विभिन्न देवताओं का साहचर्य प्राप्त कर सकता हैं । उन्हें पूर्ण रूप से अनुकूल बनाकर उचित सहयोग लिया जा सकता हैं ।

 10. कायाकल्प सिद्धि:-

कायाकल्प का तात्पर्य हैं शरीर परिवर्तन, समय के प्रभाव से देह जर्जर हो जाती हैं, लेकिन कायाकल्प कला से युक्त व्यक्ति सदैव तोग्मुक्त और यौवनवान ही बना रहता हैं ।

 11. सम्मोहन सिद्धि :-

सम्मोहन का तात्पर्य हैं कि सभी को अपने अनुकूल बनाने की क्रिया ।  इस कला को पूर्ण व्यक्ति मनुष्य तो क्या, पशु-पक्षी, प्रकृति को भी अपने अनुकूल बना लेता हैं ।

 12. गुरुत्व सिद्धि:-

गुरुत्व का तात्पर्य हैं गरिमावान,  जिस व्यक्ति में गरिमा होती हैं, ज्ञान का भंडार होता हैं, और देने की क्षमता होती हैं, उसे गुरु कहा जाता हैं और भगवन श्री हरि जगद्गुरु हैं ।

 13. पूर्ण पुरुषत्व सिद्धि:-

इसका तात्पर्य हैं पराक्रमी और निडर, एवं बलवान होना, श्रीकृष्ण में यह गुण बाल्यकाल से ही विद्यमान था ।  जिस के कारण से उन्होंने ब्रजभूमि में राक्षसों का संहार किया, तदनंतर कंस का संहार करते हुए पुरे जीवन शत्रुओं का संहार कर आर्यभूमि में पुनः धर्म की स्थापना की ।

14. सर्वगुण संपन्न सिद्धि:-

जितने भी संसार में गुण होते हैं, सभी कुछ उस व्यक्ति में समाहित होते हैं, जैसे – दया, दृढ़ता, ओज, बल, तेजस्विता, इत्यादि । इन्हीं गुणों के कारण वह सारे विश्व में श्रेष्ठतम बन जाता हैं और इसी प्रकार यह विशिष्ट कार्य करके संसार में लोकहित एवं जनकल्याण करता हैं ।

15. इच्छा मृत्यु सिद्धि :-

इन कलाओं से पूर्ण व्यक्ति कालजयी होता हैं, काल का उस पर किसी प्रकार का कोई बंधन नहीं रहता, वह जब चाहे अपने शरीर का त्याग कर नया शरीर धारण कर सकता हैं ।

16. अनुर्मि सिद्धि:-

अनुर्मि का अर्थ हैं. जिस पर भूख-प्यास, सर्दी – गर्मी और भावना-दुर्भावना का कोई प्रभाव न हो ।

इसके इलावा सिद्धिया चक्रों से भी सबंधित होती है । चक्रों पर ध्यान केन्द्रित करने से और उन्हें जागृत करने से भी विशेष सिद्धियाँ प्राप्त कि जा सकती है । दोस्तों सिद्धिया एक लम्बा दावा है, शायद पूरा जीवन जी कर भी इस सबंध में हम विस्तृत जानकारी एकत्रित न कर पायें । यहाँ पर इस विषय पर एक छोटा से लेख लिखा है जिसका मूल उद्देश्य केवल ज्ञान है । श्री मद्भागवत गीता में भगवन ने कहा है

“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन ।

मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि ॥ 2.47

अर्थात

“कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, फल पर कभी नहीं।

कर्म के फल को अपना उद्देश्य मत बनने दो, और न ही तुम्हारी आसक्ति निष्क्रियता में रहने दो।”

अत: मेरी आप सब से करबद्ध प्रार्थना है कि बिना किसी सिद्धि कि अभिलाषा के केवल साधना पर ही केद्रित रहिये और अपनी साधना को पूरी निष्ठा से करते रहिये । भगवान् श्री हरि सदैव आपका कल्याण करेंगे । 

जय श्री हरि । ।