Jai Shri Hari, Pariwar
तलाश रहा था मैं नाम वहां
जहां था भीड़ का उबाल
सुरूर था कि बनूंगा एक हिस्सा
पर परिणाम ने कर दिया उसे एक किस्सा ||
थे ना जाने कितने संग मेरे
जिन्हें मिल गया एक किनारा
बांधे मन की डोर
मैं निहारू उनकी राह ||
गोते खाऊं मझधार में
धिक्कारते अपनी असफलता को
कोई किनारा मिल जाए
बस तराशु अपनी मंजिल को ||
अब तो साथी है तू जीवन का
बन गया बेमंजिल है
देख जरा रंग महफिल के
उनकी भी एक भाषा है ||
प्रयोजन है गहराई का
यह ना जाने दुनिया की रीत
मंजिल तो एक बहाना है
जीवन का अपना तराना है ||
DIVYAM
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