आज मेरे बाबा ने मुझे वो दिया कि मेरे आंसू नहीं रुके। फफ़क फफ़क कर रोया बच्चे की तरह अपने नासमझी अपनी मूर्खता पर। आज तक जो भ्रम था वो टूट गया। समझ में आ गया सब उनका दिया हुआ और उन्ही का है, जो कुछ भी है। हमारी छोटी से छोटी जरूरत और बड़ी से बड़ी महत्वाकांक्षा का ध्यान रखा है उन्होंने। उसके बावजूद उन्हें इन सबका कोई स्वामित्व लेश मात्र भी नहीं है। और एक मैं था जो सबकुछ अपना समझता रहा। तोते की तरह रटता रहा सब तेरा। तेरा तुझको अर्पण लेकिन कभी सबमुच माना नहीं। हम उसे क्या अर्पित कर सकते है। साधना भी वही करता है साधक भी वही है और साध्य भी वही, शिष्य भी वही और गुरु भी वही। बस वही है और कुछ नही फिर भी हमे गुरुर है मैं और मेरा का।
अगर सचमुच उसे कुछ अर्पित करना चाहते हो तो अपना अहम भाव अर्पित करो। अभ्यास करो सब उसका दिया हुआ है मैं बस इस्तेमाल कर रहा हूं। इतने मैं से अहित नहीं होगा। कर्ता भाव चला जायेगा।
आप सब पर बाबा की कृपा हो। नहा लो प्रेम के सागर में।
स्वामीजी का विशेष धन्यवाद, मेरे जीवन के प्रेरणा श्रोत है वो, बाबा के रूप में यह दास आपको नमन करता है । इसके अलावा अर्पित करने को कुछ नही आज।
राम जी की चिड़िया, राम जी के खेत, खा ले चिरैया भर भर पेट। बाबा के स्वरूप में राम जी को भी नमन।
मेरे बाबा कहते है, गुरु में समस्त देवता निवास करते है। इसलिए मेरे लिए अब सब बाबामय ही है।
मैंने अपना सत्य पा लिया, प्रार्थना है बाबा से आपसब को भी मिले।
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