I love Hindi but by default(probably like most of us) I think, read and write more comfortably in English. So i was surprised when this poem burst forth in my mind in Hindi. My love for Swamiji expressed from the bottom of my heart.
किस ओर पग धरूं मैं स्वामी जो मैं तुम को पा सकुॅ..
ध्यान करूं, धर्म करुं,
साधना में लीन रहुं
शास्त्र वेद पढूं मैं या
भक्ती भाव में स्थिर रहुं.
किस ओर पग धरूं मैं स्वामी जो मैं तुम को पा सकुॅ…
नीला अंबर हरी धरा,
जल पर्वत वन में ढूंढु
मंदिर मंदिर घुमुं या
आश्रम में स्थित रहुं.
किस ओर पग धरूं मैं स्वामी जो मैं तुम को पा सकुॅ…
अन्तर मन में रखुं तुमको
चित्र तुम्हारा हर ओर रखुं
मन ही मन बातें करुं या
दर्शन कि प्रतिशा करुं
किस ओर पग धरूं मैं स्वामी जो मैं तुम को पा सकुॅ…
नेक बनुं नेकी करुं
जीवन धार के साथ बहुं
सेवा भाव में सदा रहुं या
राग द्वेष पर विजय करुं
किस ओर पग धरूं मैं स्वामी जो मैं तुम को पा सकुॅ…
घर बार अब कुछ नहीं भाते
घुमुं फिरुं तीर्थ करुं
खान पान से मन नहीं रुझता
बोलो अब में क्या करुं
किस ओर पग धरूं मैं स्वामी जो मैं तुम को पा सकुॅ…
किस ओर पग धरूं मैं स्वामी जो मैं तुम को पा सकुॅ…
Comments & Discussion
6 comments on this post. Please login to view member comments and participate in the discussion.