मित्रों, जैसा कि मैंने पहले लिखा है, भगवत गीता सार पर असंख्य लोगों ने काम किया है। जाने कितने ही गीताएं आपने सुनी भी होंगी। मेरा भी गीता जी को सरलता से समझने व समझाने का यह एक छोटा सा कदम है। तो आइए शुरू करते हैं, श्रीमद भगवत गीता सार-
आपके मन में शायद यह प्रश्न आए की आखिर गीता में ऐसा क्या विशेष है? गीता में अगर कुछ विशेष है तो वह हैं भगवान श्री कृष्ण, बाकी हम सब तो निमित्त मात्र हैं। मेरा प्रयास है, कि हम आज के ज़माने में गीता को सरलतम तरीके से समझें और यह हमारे रोजमर्रा के जीवन में हमें रास्ता दिखाएं, साथ ही हम इनकी सीख का उपयोग करते रहें। जैसा कि मैंने पहले लिखा है कि गीता जी आज के समय में भी उतनी ही प्रभावशाली हैं जितनी पहले थीं। इसका कारण है कि इसमें हम सब ही नहीं अपितु दुनिया के प्रत्येक मनुष्य के जीवन से जुड़ा कोई ऐसा प्रश्न नहीं है जिसका उत्तर गीता में भगवान ने ना दिया हो। हमारे मन मस्तिष्क में कोई भी चिंता, परेशानी, किसी भी तरह का आवेश, दुविधा, संकट हो उन सबका उत्तर भगवान गीता में देते हैं। भगवत गीता में १८ अध्याय और ७०० श्लोक हैं। जिनमें वेदों, उपनिषदों का सार है।
इनके हर अध्याय हर श्लोक में आप अपने को अर्जुन की तरह ही समझिए। अर्जुन की हर समस्या, हर डर वैसे देखा जाए, तो हमारी भी परेशानी और कठिनाइयां ही हैं। जिनका हम आजकल के हालातों में सामना कर रहे हैं और इन सभी का हल भगवान गीता में बता रहे हैं। श्री कृष्ण को सिर्फ अर्जुन का ही सखा और सारथी मत मानिए। उन्हें अपने जीवन रूपी रथ का सारथी भी मानिए। उनके कहे अनुसार अगर हम चलेंगे तो सारी परेशानियों को पार करते चले जाएंगे।
।। प्रथम अध्याय: अर्जुन विषाद योग।।
यहां धृतराष्ट्र और संजय का वार्तालाप चल रहा है। जिसमें धृतराष्ट्र संजय से जानना चाहते हैं कि धर्म-क्षेत्र कुरुक्षेत्र में होने वाले युद्ध स्थल पर क्या हो रहा है, उनके और पांडव पुत्रों के मध्य क्या चल रहा है? यहां यह बात निश्चित है कि धृतराष्ट्र नेत्रों से अंधे थे, परंतु मन और मस्तिष्क से नहीं। उन्हें मालूम था कि जो कुछ वह और उनके पुत्र कर रहे हैं, वह धर्म विरुद्ध है। परंतु पुत्र मोह ने उन्हें विवश किया हुआ था, जो उन्होंने शांति की जगह युद्ध को चुना। उन्हें पता था कि वे अधर्म के मार्ग पर हैं।
ऐसा कई बार हमारे साथ भी होता है, जब हम समझ रहे होते हैं कि हमारे किए का नतीजा अच्छा नहीं होगा, परंतु फिर भी हम वह कार्य कर लेते हैं। जिसका परिणाम हमें भुगतना पड़ता है।
संजय धृतराष्ट्र को दुर्योधन के विषय में बताते हुए कहते हैं कि युवराज पांडवों के, और अपनी भव्य सेना के विषय में अपने गुरु द्रोणाचार्य को अवगत करा रहे हैं। कि बड़े-बड़े महारथी और योद्धा उस ओर भी हैं ओर इस ओर भी।
दोस्तों कई बार हम भी ऐसी किसी स्थिति या समस्या में फंस जाते हैं, जो तब हमें बड़ी ही विशाल और भयानक दिखती है।
यहां दुर्योधन बड़ी बारीकी से युद्ध में भाग लेने वाले महारथीयों के विषय में अपने गुरु को बता रहे हैं।
इसी तरह जब भी ऐसी कोई युद्ध जैसी स्थिति हमारे जीवन में भी आ जाए, तो हमें भी सावधानी से उसके हर एक पहलू का बारीकी से निरीक्षण करना चाहिए। समस्या को हर तरह से जान लेने के बाद, बारी आती है अपनी ताकत को पहचानने की, कि हमारे पास क्या विशेषता है। जिसे उस समस्या से निकलने के लिए कर उपयोग सकते हैं।
दुर्योधन यहां अपने पक्ष के महारथियों के विषय में भी गुरु को अवगत करते है। युद्ध की क्षमता को देखते हुए युद्ध के लिए वह तैयार हो रहे हैं।
दोस्तों चुनौती हो या समस्या, हमें भले प्रकार से समझते हुए उसकी तैयारी करनी चाहिए। ताकि जब हम उस चुनौती का सामना करें, तो हमें कुछ नया ना लगे। वरना हम अचंभित हो जाएंगे, और चुनौती का सामना करने से पहले ही हड़बड़ी से हार जाएंगे।
दुर्योधन अपने शुरवीरों को लेकर बहुत उत्साहित और गर्व से भरा है, कि उसके साथी उसके लिए अपनी जान तक दे सकते हैं।
हमारे साथ भी अगर कोई समस्या आती है तो हमें भी यह यकीन होता है कि हमारे साथी, हमारे रिश्तेदार, मित्र, हमारा परिवार, आदि, हमारे साथ हैं जिसकी वजह से हमें बल मिलता है।
शीघ्र फिर भेंट होगी।
To be continued..
ॐ श्री कृष्णार्पणमस्तु।
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