अक्सर आज कल तथाकथित बुद्धिजीवी धर्म विमुख लोगों के मुंह से यही सुनने को मिलता है कि यार बाबा लोग तो यूं ही धर्म के नाम पर धंधा करते हैं,हमारा तो धर्म से यकीन ही उठ गया….देखो तो वो जेल गया वो जेल गया….राजनीति में इतने घोटाले हुए आपका उसपर से विश्वास नहीं उठा।क्रिकेट में सट्टेबाजी हुई पर विश्वास नहीं उठा।बॉलीवुड में पिछले साल कई
घटनाएं प्रकाश मे आई पर आपका विश्वास नहीं उठा और धर्म जो जीवन की सबसे अहम आवश्यकता है उससे विश्वास उठ जाता है। अगर मै अपनी भाषा में लिखूं तो ये लोग आत्मघाती हैं जिनको किसी न किसी ऐसी घटना का इंतजार होता है जिससे कि इन्हे धर्म विमुख होकर जीने का बहाना मिल जाए।जैसे ही कोई अध्यात्म की आवश्यकता समझता है,उसपर चलने की सोचता है तो संत जन या शास्त्र या धर्म वेत्ता उन्हे भोगों से हटने की सलाह देने लगते हैं और मुढ़ अविवेकी मनुष्य इस सत्य को स्वीकारना नहीं चाहता तो बस कोई एक बहाना ढूंढता है जिससे कि उसे मनमानी आचरण करने की छूट मिल जाए।हमने भी मान लिया कि कुछ बाबा ने गलतियां की है पर इससे आपको क्या मिल जाएगा,आप कौन सी आत्मोन्नती कर लोगे उनकी शिकायत करके।
कभी भूल कर भी किसी की शानदार लाइफ स्टाइल देखकर उसे असली बुद्धिमान समझने की भूल मत करना।जो असली बुद्धिमान है उसे इस अमूल्य मनुष्य जीवन में अध्यात्म की और उसके पथ पर आगे बढ़ाने वाले किसी बुद्ध पुरुष की नितांत आवश्यकता होती है।पर अध्यात्म मनमाने भोग वासना से हटकर अंतर्मुखी बनने की प्रेरणा देता है जिसके लिए पशुवत जीवन जी रहे लोग सहज तैयार नहीं होते और कोई न कोई खोट धर्म मे ही निकाल लेते हैं।आप सोचो कि सिर्फ शरीर के तल पर ही जीने वाले लोग,जिनके जीवन में धर्म और अध्यात्म का लेशमात्र भी नहीं क्या उसकी दुर्गति में कोई संदेह भी है।जाने क्यों खुद को एडवांस कहलवाने के लिए लोग संतो,ऋषियों और विद्वत जनों की निंदा करने से नहीं चूकते।अरे अच्छे भी संत तो हैं जो आपके जीवन में सार्थक सुधार कर सकते हैं पर आपको उनके नाम नहीं मालूम।कारण एक ही है। संत या शास्त्र आपको भोग से हटने और योग अध्यात्म से जुड़ने की नसीहत देंगे जिसे भोगी मन कभी स्वीकार नहीं करेगा।यही तो है पशुता।शरीर के लिए पशु भी जीता है।
ज्यादातर लोग समझते हैं कि साधना,जप, ध्यान इत्यादि भगवतीक क्रियाएं बाबा टाइप लोगों के लिए है।अपन तो बस मौज करने दुनिया में आए हैं।ऐसी मानसिकता के लोग भरे पड़े हैं सनातन धर्म में जिनका धर्म अध्यात्म से दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं।बस पैसा और पेट के लिए जीना है इन्हे।ये लोग नाम मात्र के हिन्दू हैं।हर मजहब या रिलीजन में लोग अपनी रीतिरिवाज़ों और उनसे सम्बन्धित ग्रंथों का अध्ययन करते हैं पर हमारी युवा पीढ़ी के पास सॉलिड जवाब है कि भगवान तो दिल में ही हैं फिर काहे को कुछ करें।अरे भगवान तो वास्तव में दिल में हैं पर उन्हें रियलाइज करना पड़ता है फिर अनुभव मे आते हैं।सप्ताह के 6,दिन जिनकी थाली में हड्डियों का ढेर मिलता है वो भी कहते हैं भगवान तो दिल में ही है। ग्रंथ ही हमारे जीवन का आइना हैं लेकिन हमारे पास अपने आप को जानने का वक्त नहीं है।किसी को पूछो कि क्यों जी रहे हो उद्देश्य क्या है जीने का तो बस एक ही जवाब मिलेगा कि आगे इससे बेहतर भोग भोगने मिलेंगे।,,,,,,,,,,काश इन so called advance लोगों को ये पता चल पाता कि बुद्धि से परे भी कोई दुनिया है,आपके जीवन की एक अलग भी सच्चाई है,आप वास्तव में हो कौन , कहां से आए और कहां जाना है,,,,,इतना अगर मालूम चल जाए तो वह स्वयं अपने जीवन की सत्यता के राह चल पड़े।
दो में से कोई एक ही बात होगी या तो आप धार्मिक बनकर जिओगे या विधर्मी बनकर।जब आप बॉलीवुड के फिल्मों से धर्म के सच का आकलन करोगे तो उसकी तो चाल ही है कि आप धर्म विमुख होकर भोगों मे फंसो।वो वही चाहेगा जिससे उसकी दुकान चले। पीके और आश्रम जैसी फिल्में सनातन धर्म का वास्तविक स्वरूप नहीं बता सकती।उनके डायरेक्टर और प्रोड्यूसर कौन से महान आत्मा हैं जिन्हें धर्म का इतना विशाल ज्ञान हो गया।वो तो पैसे के लिए मां सीता जैसे किरदार को भी अलग तरीके से पेश कर सकते हैं।इसलिए सनातन धर्म की वैज्ञानिकता और इसकी जीवंतता को सही रूप में समझने की जरूरत है।और धर्म आपके जीवन की बिल्कुल वैसी ही आवश्यकता है जितना भोजन पानी और हवा।ये बाबा टाइप लोगों के लिए ही नहीं आपके लिए भी उतना ही प्रासंगिक है,,,,बशर्ते कि आप मनुष्य रूप में हों।श्री राधे श्याम

बाबा लोग तो ऐसे ही होते हैं….
मेरा तो धर्म से विश्वास ही उठ गया है
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