माथा
देख ज़रा, मेरा माथा ख़राब है क्या?
पसीने बहाने पर भी मालिक मुझे मेरे हक़ की नहीं देता।
और कभी इस ओर देकर,
उस ओर से छीन लेता है।
ऐसा क्यों होता है, तुझे पता है क्या?
बोलना?
मैंने उसकी बात और अपने ज़िम्मेदारियों की लाज हमेशा रखी।
मलबों के भीतर भी कभी साँसों को अकेला नहीं छोड़ा।
और मैंने खुद भी देखा है कई बार, ऊपर से बादल हटाते उसको।
जाने क्यों वो ऐसा करता है?
अच्छा, देख ज़रा करीब से, लकीरें ख़राब हैं क्या?
अबकी बिखरा तो न जाने कैसे सिमटूँगा,
शायद सिमट भी गया तो, सिर्फ सासें लेता रहूँगा।
तू ही कहता है, वो कुम्हार है,
और तेरी बनती भी ना उससे।
पूछना ज़रा,
मुझसे खफा है क्या?
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