यह २०१७  की बात है की  जब  स्वामी जी का पहला विडिओ मेरी यूट्यूब की स्क्रीन पर आ गया, वो विडिओ ध्यान से संभधित था, उस समय मैंने ध्यान करना प्रारम्भ ही किया था,और मै ध्यान की कला को सीखने को लेके काफी उत्सुक था, मैंने लगातार स्वामी जी के कई सारे विडिओ एकसाथ देखे मेरी स्वामी जी से संपर्क की शुरुवात कुछ ऐसे ही संभव हुई,और फिर धीरे धीरे मै उनके नजदीक पहुँचता ही चला गया ।

जैसे की वे कहते है की उन्हें जिन्हें अपने पास बुलाना होता है वे उन्हें ढूंढ ही लेते है। शायद हम सभी उनमे से एक है, जो केवल और केवल उन्ही की कृपा दृष्टि के अधीन है।

जब मै प्रथम बार उनसे पिछले वर्ष मिला था वो अनुभव मेरे ह्रदय में बिलकुल अंकित सा हो गया, आज भी ऐसा महसूस  होता है जैसे की दिन प्रतिदिन वो हमारे साथ ही रहते है।

उन तीन मिनट ने जैसे आपके हर्दय को बिलकुल प्रेम से भर दिया हो, मै लिखते समय भी जो भावो को अनुभव  कर रहा हूं शायद मै उसे लिख नहीं सकता, मुझमे इतनी छमता नहीं  कि मै उस अनुभव को बया कर पाऊ, फिर भी एक कविता के माध्यम से उनके प्रेम और अपने अनुभव को लिख पाना एक प्रयास मात्र ही है । ये कविता मैंने स्वामी जी को लिख कर दी थी जब मै उनसे दूसरी बार मिला था । इसको प्रकशित करने का उदेस्य इतना है , किआप भी उस प्रेम को अनुभव कर सके जो मैंने किया।

मिलते मिलते ही मिलता गया, सोचते सोचते ही खोता गया

अनुभव मुझे यूँ कुछ ऐसा हुआ शब्दो को जिस मै लिख न सका ।

दृष्टि परी आप की इस तरह, दृष्टि में जैसे समाता गया

आपके शब्दों ने मुझे ऐसा छुआ, पहले कभी कुछ न ऐसा हुआ ।

बरसा हो प्रेम जो नित दिन बढ़ता गया खाली कुआ जैसे भरता गया

प्रश्नो को अपने मैं भूलता गया, मिलने से पहले छाया कुछ नशा ।

जब जब मैंने आपका चिंतन किया ,चढ़ता गया मेरा ये नशा

सुनना नहीं आप मेरा कहा स्वार्थी हूँ थोड़ा क्या मांगू नहीं पता ?

देना वही जिससे मेह्कुं सदा करता रहू जिससे किसी का भला

साथ हो मेरे आप यूँ ही  सदा अनुभव मैंने ये महसूस किया ।

चरणों में रखना मुझे यूँ सदा चरणों में रहना मुझे ही सदा ।