एक बार मेरी दादी सास ने मुझसे कहा ——— बहू, वैसे तो हमारा घर भरा पूरा है। लेकिन फिर भी कनागतो की अमावस्या को पंडित जी को खाना जरूर खिलाना ।
मैंने कहा ठीक है —अम्मा जी,
इसीलिए पितृ पक्ष की अमावस्या को पंडित जी को भोजन अवश्य कराती ।(कभी-कभी पंडित जी के कहने पर मैंने सूखा सामान जैसे- आटा ,चावल, सब्जी, घी ,नमक ,फल इत्यादि भी उनके पास पहुंचाया )।
मंदिर घर के पास होने के कारण वह निर्धारित समय पर आ जाते ।
एक दिन पंडित जी बोले —कि मैं अभी खीर ही खाऊँगा । भोजन आप मंदिर में भिजवा दें।( उनका परिवार मंदिर में ही रहता है)। मैं भोजन पहुँचने मंदिर में पहुंची—– तो वहां का दृश्य देख कर मैं आवाक् रह गई। मेरी आंखों के आगे अंधेरा सा छा गया। आज भी वह दृश्य मुझे व्याकुल कर देता है ।
मैंने देखा—— वहां बहुत बड़े -बड़े बर्तन (जैसे शादियों में होते हैं )रखे हैं।
एक बर्तन में दही व खीर दोनों एक साथ ।
एक बर्तन में सब सब्जियां (सूखी व रशे की) ड़ाल दी गयी थी ।
एक ओर भूमि पर पूरियो का ढेर लगा था ।
एक ओर चावल व पुलाव की पहाड़ी पर मक्खी, मच्छर पिकनिक मना रहे थे।
दूसरी ओर खीरा ,टमाटर आदि के ढेर पर मक्खियों का झुंड ताजे सलाद का आनंद ले रहा था।
मुझे असलियत का नहीं पता था। इसलिए मैंने पंडित जी से पूछा— कि यह सब क्या है? पंडित जी ने बहुत लापरवाही से उत्तर दिया कि यह भोजन यजमानो के घर से आया है ।
मैंने व्याकुल होकर पूछा –कि आप इस भोजन का क्या करेंगे? उन्होंने कहा कि जमादार अपने सूअरों के लिए ले जाएंगे ।
उनका यह वाक्य सुनकर —–मैंने अपने द्वारा लाए गए भोजन को (8-10 डिब्बे )देखा। जो भोजन मैंने सुबह 5:00 बजे उठकर तीन-चार घंटे से अधिक समय लगाकर प्रेम व श्रद्धा पूर्वक पितरों के लिए बनाया था क्या उसका भी यही हश्र होने वाला है?
क्या सूअरों को दिया गया भोजन पितरों तक पहुंचेगा?
मुझे कुछ राहत मिली ,जब वह भोजन पंड़ित जी ने अपने घर भिजवा कर खाली डिब्बे मेरे हाथ में थमा दिए।
मैं अनगिनत विचारों से घिरी घर की ओर बढ़ने लगी। परंतु कुछ दूर वापस जाने के बाद अचानक मैं फिर से पंडित जी के सामने खड़ी थी।
मैंने पंडित जी से कहा — पितरों के लिए बनाए गए भोजन का ऐसे अनादर ना करें ।बल्कि स्वच्छ डिब्बों में भरकर किसी गौशाला या अनाथालय में भेजा जा सकता था। यह कहकर उनकी उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना मैं घर की ओर चल दी।
तब से कभी भी मैंने पंडित जी के लिए भोजन मंदिर में नहीं भिजवाया। मैंने सोचा एक पंडित जी एक दिन में कितने घर में भोजन कर सकते है? इससे तो अच्छा है कि हम किसी जरूरतमंद या भूखे को भोजन कराएं ,उसकी आत्मा तृप्त होने पर वह अवश्य आनंदित होगा।
इस विषय में आपका क्या विचार है अवश्य बताएं ।🙏🙏
।।जय श्री हरि।।🙏🙏
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