मैं बहती हूँ शरीर में जब इंसा ख़ुशी औड़ता,गमगीन पलों में मैं मुखौटा बनती हूँ।
वो मुझे बांधता है अपने आँसुओं संग,अपने बेइंतहा खुशी के पलों में ।
बेवजह मैं किसी को ढकती हूँ तो जहाँ उसे पागल क़रार देता है।
किसी अजनबी का बावला ढंग देख
मैं बमुश्किल रुकूँ कुछ पल फिर
ठहाके में बहूँ मैं।
कभी तुम मुझे दफ़न कर देते हो अपने ही भीतर फिर किसी अजनबी संग यादें ताज़ा होने पर मुझ में साँस भरते हो।
जब मैं खुलकर रोम रोम में बहूँ तो सब मुश्किलें काफ़ुर कर जाऊँ!
मेरे चेहरे भिन्न भिन्न,बहाने भिन्न भिन्न
पर मेरा मक़सद बस एक।
सीधी चीज़ें कभी उल्टी हो जाएं दोस्त चलते हुए रपट जाए करीबियों संग दावतें हो जाएं तो मुझे लगता है निशाँ बाक़ी हैं मेरे इस जहाँ में।😊😊😊😊

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