एक कविता, जो आप सभी के सामने प्रस्तुत कर रहा हूं।
आशा करता हूं आप सभी ने ये अनुभव किया होगा।
सारांश यही है कि हम व्यर्थ ही यहां वहां सब ढूंढते रहते हैं पर सबकुछ हमारे अंदर ही है। बस एक बार अंदर झांक कर देखने की जरूरत है।
पर क्या करें हरि की माया है, और उसी में हम अटके पड़े हैं। वो स्वयं माया बुनते हैं और स्वयं उससे बाहर निकलने का मार्ग बताते हैं।
करले मद में नृत्य पगले,
सब कुछ तेरे अंदर है।
काहे ढूंढ रहा खुशियां बाहर,
सब कुछ तेरे अंदर है।
यही है काबा, यही कैलाशा,
यहीं पर भगवन, यहीं पर दर्शन,
यहीं पर खुशियां, यहीं पर कीर्तन,
सब कुछ तेरे अंदर है।
करले मद में नृत्य पगले,
सब कुछ तेरे अंदर है।
ढूंढ रहा तू यहां वहां सब,
अपने प्रश्नों के उत्तर।
एक बार बस देख ले रे पगले,
अपने अंदर का दर्पण।
मिल जाएंगे सारे उत्तर,
मिल जाएंगे राम भी तुझको,
सब कुछ तेरे अंदर है।
करले मद में नृत्य पगले,
सब कुछ तेरे अंदर है।
Comments & Discussion
21 COMMENTS
Please login to read members' comments and participate in the discussion.