बड़ी अजीब-सी उधेड़बुन है, महामाया! आज अचानक मन कह उठा, “माँ चाहिए!” सुना था मैंने कि देवी की कृपा से ही देवी की आस जगती है। बात बड़ी मुबारक थी! आस के बहाने ही सही, जगतजननी को याद तो आयी कि वो मेरी भी जननी है! अक्सर लगता था कि पराम्बा मुझे जन्म देकर भुला बैठी है। अक्सर बस उनसे इसी बात से रूठ जाया करता था मेरा बचपन। मेरी माँ बिसरा बैठी है मुझे पैदा करके!

जब बड़ी हुई तो एहसास हुआ: अनगिनत ग्रह-नक्षत्रों में बसे असंख्य जीवों की अम्मा! यहाँ इंसान के लिए अपनी ही प्रजाति की संतान को संभालना दुभर हो जाता है और वहाँ अम्मा हैं जो कीड़ा-मकौड़ा, फूल-कली, पत्ता-चारा, 750 पैर वाले जानवर (Millipede) से लेकर दो पैर वाले इंसान तक को संभालकर बैठी है। कभी पिद्दी-से virus को कोख में पालती है तो कभी 1,30,000 किलो का whale पैदा कर देती है। अब इतने सारे बच्चे पालेगी अम्मा तो कहाँ ही फ़ुरसत होगी।

पर आज जब मन ने खुद कहा कि माँ चाहिए तो एकदम से लगा जैसे महादेवी को अचानक याद आ गया हो मेरा जन्म! एक बड़े अनाथ आश्रम-सा यह विश्व। सुन्दर है, बेशक! त्रिपुर सुंदरी का आइना है तो सुन्दर होना लाज़मी भी है। पर माँ सामने न हो तो कबतक ही बच्चे का मन लगेगा खिलौनों में? एक बड़े अनाथ आश्रम-सा यह विश्व और मैं इस अनाथ आश्रम के किसी कोने में पड़ी एक बच्ची जिसे कोई adopt नहीं करता। उसे फिर भी कहीं न कहीं आभास है कि उसकी भी एक माँ है। गाय के झुण्ड में बछड़ा अक्सर ही अपनी माँ को ढूंढ लेता है और उन सब गायों के बीच सिर्फ अपनी माँ के थनों को ही पान करता है। माँ के होने का एहसास बच्चे को हमेशा ही रहता है। जन्मों से इस अनंत अनाथ आश्रम में पड़ी मेरी आत्मा को आज मानों किसी ने कहा हो कि उसको adopt करने उसकी वही माँ आ रही है। “माँ चाहिए!”

माँ तो चाहिए पर दुविधा यह है कि माँ है कौन? किसपर ध्यान लगाएं? किसकी आराधना करें?

“सिन्दूरारुण विग्रहां”? माँ का वर्ण सिन्दूरी है?

“हेमाभां पीतवस्त्रां”? महामाया स्वर्णिम वस्त्र पहनती है?

“माणिक्यमौलि स्फुरत्”? माणिक जड़े मुकुट से शुशोभित है?

“धृत पाशाङ्कुश पुष्प बाणचापाम्”? माँ पाश, अंकुश, पुष्प, बाण लिए हुए है?

“कनकाङ्गद-केयूर-कमनीय-भुजान्विता। रत्नग्रैवेय-चिन्ताक-लोल-मुक्ता-फलान्विता।”? माँ के हाथो में सोने के बाज़ूबन्द हैं। गले में सोने और अन्य जवाहरातों से बना हार है जिससे मोती झूल रहे हैं?

“चन्दन-द्रव-दिग्धाङ्गी”? माँ के शरीर से चन्दन की मोहक खुशबू आती है?

तो क्या अमावस की रात-सी काली, सूती की tribal साड़ी लपेटे, घुंगराले अघोरन बालों का मुकुट पहने, हाथों में एक जंगली टहनी पकड़े, मोगरे और गुड़हल के फूलों से सजी, मछली की महकती टोकनी कमर पर रखी लड़की मेरी माँ नहीं है?

या फिर…

पीत-वर्ण, जीन्स-टीशर्ट पहने, बिखरे बालों के messy bun पर चश्में का मुकुट बना, हाथो में laptop पकड़े, गले में headphone का हार पहने, deodorant से नहाई एक औरत मेरी माँ नहीं है?

माँ स्त्री है? तो कोई पुरुष भी है? और उसका स्वरुप भिन्न है माँ से?

माँ साड़ी ही पहनती है बस? कुछ भी और नहीं?

माँ से जुड़ा सब लाल है? तो क्या पीला, हरा, सफ़ेद, काला, नीला माँ के रंग नही हैं?

माँ ऐं है? ह्रीं है? श्रीं है? क्लीं है? तो बाकी की वर्णमाला कौन है? 

“यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं श्रीमदूर्जितमेव वा। तत्तदेवावगच्छ त्वं मम तेजोंऽशसम्भवम्‌॥” किस रूप पर ध्यान लगाऊं जब हर एक विभूतियुक्त, ऐश्वर्ययुक्त, कांतियुक्त और शक्तियुक्त वस्तु उन्हीं के तेज के अंश की अभिव्यक्ति है?

“विष्टभ्याहमिदं कृत्स्नमेकांशेन स्थितो जगत्‌।” संभव भी है उस अनंत देवी को स्व-निर्मित किसी एक रूप में सीमित कर पाना जब वो महामाया इस संपूर्ण जगत को अपनी योगशक्ति के मात्र एक अंश में धारण करके स्थित है!

कौन है माँ? किसके लिए मन तड़पता है?

पूरे ब्रम्हांड को अपने कोख से जन्म देने वाली माँ जो अपने असंख्य निर्जीव-सजीव सन्तानो में असंख्य रूपों को धारण किये हुए है, उसके किस एक रूप पर ध्यान लगाऊं जिसमे उसका कोई और रूप तिरस्कृत ना हो!

किस मंत्र में मन लगाऊं कि “वर्णरूपिणी” की आराधना में एक भी अक्षर ना छूट जाए?

किस रंग से रंग लूँ आत्मा को कि भक्ति का एक भी रंग अनछुआ ना रह जाए?

किस भाव में रम जाऊं कि इश्क़ से लेकर नफरत तक हर भाव उसकी तपस्या में लीन हो जाए?

काट-छाँट कर मोहब्बत कैसे होगी? सौम्य-रौद्र, साधारण-असाधारण, ब्रम्हांड सुंदरी और अघोरन! सम्पूर्ण माँ उनके सम्पूर्ण रूपों के साथ चाहिए।

माँ तो चाहिए पर कैसे ये कौन बताये!