जय जवान जय किसान
इनसे है मेरा देश महान!!
क्या मैं ऐसा बोल सकती हूँ?
संशय!!संशय !!संशय!!

क्या कहा?हमें सुना नहीं!!
सैलाब हमारा एक बार फिर निकला सत्ता के रखवालों से माँगने अपना हक़!!अन्नदाता हैं हम अन्न्न्न्दाता!!!! अन्न्न्न्दाता!!
कितने ठगे हुए हैं हम, कितना घिनौना परिहास, परिहास परिहास!!

बंद दरवाज़े की चौखट रोए,
चाबी भी ताले में कई बार अटकी।
हाँ मै किसान हूँ झेल रहां हूँ जो मार सत्ता की, मौसम की,नीतियों की और वक्त की।।
हक और हक़ और बस हक़!!

माना सर पर बोझ है आढ़ती का,
कर्ज़ की भी गहरी अनेकों छाप हैं,
किसानी नाम है दूजा संघर्ष का
हौंसले का हौंसले का हौंसले का!!

ये घना कोहरा,ये औस,ये तन चीरती ठंडी हवा और ये बर्फीला पानी!! मैं डटकर खड़ा खेत में
गेहूं की रखवाली करता,
है एक बहरूपिया, तो कभी मदारी,
जो हमारा लहू चूस के भरता है
पूँजीपतियों की जेबें!!
कर चिंतन! कर चिंतन! कर चिंतन!

मेरी भुजबलि में बेहिसाब ताक़त
इस माटी की ही देन है,
जिसे मेरे खून पसीने ने सींचा
शिक्षा में तू हमसे कहीं ज़्यादा नहीं,एकमात्र है तेरे पास बस कुर्सी का नशा।। हो न्याय !!न्याय!!न्याय!!

कितनी मानसिक यातनाएँ, शारीरिक प्रताड़नाएँ!! क्या मेरी आँखो की चमक धुंधली कर पायी? मुझे मेरे मार्ग से हटा पाई
प्रचण्ड और प्रचण्ड और प्रचण्ड!!

बच्चे, बुजुर्ग, जवान, महिला किसान,श्रमिक, है ये सबके विकास की बात,
देश के रखवाले,सत्ता के ठेकेदार
लगाए बैठे हैं घात!!
मैं रुकूँ नहीं,बल से पीछे हटूँ नहीं
आत्महत्या मैं करूँ नहीं,
बात अब आईने सी साफ़
ली शपथ! ली शपथ! ली शपथ!!