Manthan | मन्थन…
Written and Recited by Saurabh Dixit
Video by Shreyansh Dixit
गली-गली, शहर-शहर
घड़ी-घड़ी, पहर-पहर
फ़िज़ाओं में है, बेचैनियाँ
कि हवाओं में है, घुला ज़हर
है पसरा हुआ, सन्नाटा
जहाँ-जहाँ जाए, नज़र
फ़िज़ाओं में है, बेचैनियाँ
कि हवाओं में है, घुला ज़हर
बेबसी से, सब हैं बँधे
है हाल सबका, पूछते
फ़िक्र माथे पे लिए
कहीं ज़िंदगी से जूझते
साँस में, उलझन बढ़ी
है ठहर गयी ये ज़िंदगी,
सूझता है अब ये नहीं
की ज़िंदगी किस ओर चली
एक घर की, चार दिवारी में
हो सिमटे तुम, हैं सिमटे हम
है समय की, धड़कन संग छुपी
आसों की माला बुनते हम
कैसे जूझें, इस संकट से ?
कब-तक आपस में, बचना होगा?
इंसाँ की ख़ूबी, जीवित रखके
हर उपाय हमें, करना होगा
ज़रिया ढूँढे ख़ुद में,
ख़ुद को, ख़ुश रखने की,
ताक़त बनकर
उलझन को सुलझा सकने की
ख़ुद हिम्मत
और इक राहत बनकर
जब धरती पर, अब नवे शीश
फ़ितरत अपनी भी तौलें हम
पैरों के नीचे, जो जहाँ मिला
क़दमों के क़ीमत, अब समझे हम
संकट देता, संकेत यही
हर जीवन की, हम कद्र करें
इँसा में, इँसा को ढूँढ़े
हो सके किसी का दुःख हरें
आप सबको स्वस्थ भविष्य की शुभकामनाओं सहित
Photo by Steve Johnson from Pexels
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