Kabir Das was a 15th-century Indian mystic poet and saint, whose writings influenced Hinduism’s Bhakti movement and his verses are found in Sikhism’s scripture Guru Granth Sahib, Satguru Granth Sahib of Saint Garib Das and Kabir Sagar. Kabir suggested that Truth is with the person who is on the path of righteousness, considered everything, living and non living, as divine, and who is passively detached from the affairs of the world.[1]

गुरु गोविंद दोऊ खडे, काके लागुं पांय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।।

When Guru and Govind comes in front of you, at whose feet shall we bow down? We should bow down at Guru’s feet first because its because of Guru only that we have got vision of Govind.

कबीर जी इस दोहे में कहते हैं की अगर गुरु और गोविंद दोनो समक्ष आ जाए तो किसे पहले नमन करना चाहिए ,  सर्वप्रथम गुरु को चरण स्पर्श करना चाहिए क्यूँकि उन्ही की कृपा से ही भगवान गोविंद के दर्शन हुए हैं |

 

मूलध्यान गुरु रूप है, मूल पूजा गुरु पांव।
मूल नाम गुरु वचन है, मूल सत्य सत भाव।।

The key concentration of meditation is Guru that means one should  meditate upon Guru, One should offer prayer at Guru’s feet. Guru’s saying is the ultimate truth and ultimate truth is true bhaav. 

कबीर जी कहते है – ध्यान का मूल रूप गुरु हैं अर्थात सच्चे मन से सदैव गुरु का ध्यान करना चाहिये और गुरु के चरणों की पूजा करनी चाहिये और गुरु के मुख से उच्चारित वाणी को ‘सत्यनाम’ समझकर प्रेमभाव से सुधामय अमृतवाणी का श्रवण करें अर्थात शिष्यों के लिए एकमात्र गुरु ही सब कुछ हैं।

 

कबीर गुरु की भक्ति का, मन में बहुत हुलास।
मन मनसा मा जै नहीं, होन चहत है दास।।

Kabir says although there is lot of happiness to serve Guru but you have not purified your heart. Unless the heart is not pure , its not possible to serve Guru.

गुरु की भक्ति करने का मन में बहुत उत्साह है किन्तु ह्रदय को तूने शुद्ध नहीं किया। मन में मोह , लोभ, विषय वासना रूपी गन्दगी भरी पड़ी है उसे साफ़ और स्वच्छ करने का प्रयास ही नहीं किया और भक्ति रूपी दास होना चाहता है अर्थात सर्वप्रथम मन में छुपी बुराइयों को निकालकर मन को पूर्णरूप से शुद्ध करो तभी भक्ति कर पाना सम्भव है।

 

गुरु समान दाता नहीं, याचक सीष समान।
तीन लोक  की सम्पदा, सो गुरु दिन्ही दान।।

There is no great giver than Guru in the world and no requester than disciple. The Master gives the knowledge and wisdom which is equivalent to three world’s wealth.

सम्पूर्ण संसार में गुरु के समान कोई दानी नहीं है और शिष्य के समान कोई याचक नहीं है । ज्ञान रुपी अमृतमयी अनमोल संपत्ति गुरु अपने शिष्य को प्रदान करके कृतार्थ करता है और गुरु द्वारा प्रदान कि जाने वाली अनमोल ज्ञान सुधा केवल याचना करके ही शिष्य पा लेता है।

 

भक्ति पदारथ तब मिले, जब गुरु होय सहाय।
प्रेम प्रीति की भक्ति जो, पूरण भाग मिलाय।।

Kabir says without Master, its not possible to attain Bhakti. The essence of Bhakti is only attainable under the guidance of Master.

कबीर जी कहते है कि भक्ति रूपी अनमोल तत्व की प्राप्ति तभी होती है जब जब गुरु सहायक होते है, गुरु की कृपा के बिना भक्ति रूपी अमृत रस को प्राप्त कर पाना पूर्णतया असम्भव है।

 

जब मैं था तब गुरु नहीं, अब गुरु है मैं नाहिं।
प्रेम गली अति सांकरी, तामें दो न समांही।।

When ‘I’ was there, Master was not present. When Master appeared , ‘I’ could not exist anymore. When Master is present, there is no room for ego.

जब अहंकार रूपी मैं मेरे अन्दर समाया हुआ था तब मुझे गुरु नहीं मिले थे, अब गुरु मिल गये और उनका प्रेम रस प्राप्त होते ही मेरा अहंकार नष्ट हो गया। प्रेम की गली इतनी संकरी है कि इसमें एक साथ दो नहीं समा सकते अर्थात गुरु के रहते हुए अहंकार नहीं उत्पन्न हो सकता।

 

source :

[1] Wikipedia

Hindi Translation : https://apratimblog.com/guru-par-kabir-ke-dohe/