मैं प्रिय साध्वी श्रद्धा ओम जीं ने लिखे पोस्ट पढ़ रहि थी । उन्होंने लिखे बहुत हि अर्थपुर्ण , सुंदर वाक्यों को मैंने अपने पोस्ट में एकत्रित कर दिया है । धन्यवाद प्रिय साध्वी जी हमें आपके लिखान से अध्यात्मिक मार्ग पर अग्रेसर करने के लिए 🙂🙏🙏🌷🌷🌷🌷🌷
सर्वोत्तम पद केवल सुख, समृधि और वरदान देने के लिए नही होते। जितना बड़ा अधिकार, उससे भी बड़ा कर्तव्य होता है और उस से भी कही ज़्यादा त्याग करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
भ्रम और अहं मनुष्य की बुद्धि को अनुचित दिशा देते है।
अकारण प्रसन्नता ईश्वर का आशीर्वाद होती है।
अकारण तनाव की अग्नि आनंद को भस्म कर देती है।
संघर्ष के बाद जीवन में उत्सव के भी पल आते है।
निःस्वार्थ सेवा से ईश्वर आपको स्वयं का स्वरूप देने के लिये बाध्य हो जाते है।
निपुण अध्यक्षता ही एक सभा को एक भव्य समारोह में बदल सकती है।
कभी कभी ईश्वर भी बिना तपस्या के वरदान देते है।
भक्ति का एक नाम सरलता भी है।
भावनाओं में क्षण भर का परिवर्तन भी मन की दिशा बदल देता है।
भक्ति का रंग कैसा भी हो, चढ़ता ही है।
पूजा में मंत्रों से अधिक, आराध्य के लिये प्रेम होना चाहिए !
किसी अपरिचित को आतिथ्य प्रदान करना मानवता का एक विशिष्ट गुण होता हैं।
गुरु की आज्ञा और सेवा परम सौभाग्य से प्राप्त होती है।
चिंता मत करो, मैं हुँ ना।” गुरु के यह दिव्य शब्द बड़ी से बड़ी चिंता को आनंद में परिवर्तित कर देते है।
परिवर्तन, जीवन का एक स्थिर सत्य है ।
यह शरीर भी अपने आप में एक प्रकृति का ही स्वरूप है।
प्रसन्नता और समृद्धि में इच्छाओं की सीमा समाप्त हो जाती है।
हमारी हर स्तिथि, हमारी मनोदशा पर निर्भर करती है।
माया चक्र में फँस कर मनुष्य की बुद्धि, वास्तविकता देख नहीं पाती।
मानसिक तनाव कभी शांति से सोचने की अनुमति नहीं देता।
समस्या के समय चिंता ना करके, उसके समाधान पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
स्तुति और प्रशंसा अगर सच्ची हो तो विनम्रता बढ़ती है, नही तो केवल अहंकार बढ़ता है।
चित्त और आत्मा का तर्क-वितर्क केवल अस्तित्व को लेकर होता है।
चित्त से निर्णय लेने पर एकदम से एक विजय की अनुभूति होती है, लेकिन उस विजय का आनंद केवल क्षणभर का होता है। आत्मा से निर्णय लेने पर शुरू में तो एक हार, एक दुखद अहसास होता है लेकिन कुछ समय बाद वही निर्णय हमारे आध्यात्मिक विकास का कारण बनता है।
विकट परिस्तिथियों में भी अपने आचरण का स्मरण रखने से परिस्थितियों का स्वरूप बदल जाता है।
ईश्वर की कृपा और करुणा से पराजय भी जय में परिवर्तित हो जाती है।
हमारे जीवन में सुंदर क्षण, ईश्वर की इच्छा पर नही बल्कि हमारी इच्छा पर निर्भर करते हैं।
छल से अर्जित किए गए ज्ञान की दिशा केवल विनाश की ओर लेकर जाती है।
ईश्वर अपनी लीला करने के लिये किसी परिस्थिति या अवसर की प्रतीक्षा नहीं करते।
युद्ध, चाहे शारीरिक हो या मानसिक, उसके दुष्परिणाम सभी को भोगने पड़ते है।
पूर्णविराम के बाद ही एक नए जीवन का आरम्भ होता है।
🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷🌷
Comments & Discussion
22 comments on this post. Please login to view member comments and participate in the discussion.