दादी मां

अम्मा देखता हूं जब आपको इन आंखों से।
एक चलचित्र यादों का गुजरता है इन आंखों से।
आपको और आपके प्रेम को खोने के डर से।
स्वतः अश्रु छलक जाते है इन आंखों से।।

।।जय श्री हरि।।
सौभाग्यशाली हैं आप यदि आपको दादा और दादी का प्रेम मिला है।
दादा जी पर तो हमने पहले ही लिखा था लेकिन आज दादी के बारे में कुछ लिखने जा रहे हैं। दादी और पोते का जो संबंध है वो दो मित्रों के संबंध के जैसा ही है। कहते है जब हम बूढ़े हो जाते है तो बच्चे बन जाते है। बच्चों के दोस्त भी तो बच्चे ही होंगे न। इसलिए मुझे लगता है दादी और पोता दोनों घनिष्ठ मित्र होते है।
मेरी दादी अभी 78 वर्ष की आयु में हैं और मैं 20। 58 वर्ष से अधिक अनुभव है उनके पास। कई परेशानियां इस जीवन में देखी है उन्होंने। ज्यादा तो बताती नहीं अपनी व्यथा मुझसे वो लेकिन उनका और मित्र भी कौन है जिस से वो बता पाएंगी। मुझे याद है बचपन के वो दिन जब मुझे खेल खेल में चोट लग जाती तो दादी दौड़ी दौड़ी आती और अपने हाथों में उठा के मुझे अपने आंचल में रख लेती और खूब दुलार करती। मेरे मन को बहलाने के लिए कभी कभी तिल के लड्डू भी दे देती। मेरी मां को तो मेरी चिंता ही नहीं होती थी मानो वो निश्चिंत थी क्योंकि मैं उनकी गोद में था जिन्होंने चार चार संतानों को पाला है। अनुभव था उनके पास।
बचपन में हर बच्चे अपने दादा दादी के करीब होते है। जब मां पैसे देने से मना करती थी तो दादी के पर्स से देवी लक्ष्मी कृपा करती थी। मुझे याद है, एक बार बचपन में मैं अपनी गैया को देखने गौशाला गया और गलती से पत्थर पर गिर गया। मेरी दादी तुरंत दौड़ी दौड़ी आई जब उन्हें मेरी रोने की आवाज़ सुनाई दी। उन्होंने गोद में उठाया और अपने साथ ले गई। अपनी गोद में बिठा के शॉल से ढक के मुझे लोरी सुनाने लगी और मुझे वही उनकी गोद में नींद आ गई।

सर्दियों के वो दिन जब दादी, मां, बड़ी मां, छोटे चाची सब बैठ के पकवान बनाते थे। लड्डू मेवा सब बनता था। और हां धागों से खुशियां भी बुनी जाती थी। मेरी दादी मेरे लिए हर वर्ष अपने हाथों से एक स्वेटर बनाती थी। हिमाचल की कड़क शर्दियां मेरी दादी द्वारा दी गई ढाल को ना भेद पाती थी।
जब 2016 में दादा जी की मृत्यु हुई और सब रो रहे थे और वहां दादा जी को अंतिम यात्रा के लिए अर्थी तैयार हो रही थी। मेरी दादी मेरे पास आई और मुझे गले से लगाया और कहा: “अब मैं तेरे सहारे हूं।”
मेरे पास शब्द नहीं कि कैसे व्यक्त करूं भावों को।
मेरा वश चले तो मैं तो दादी को हमेशा के लिए अपने पास रखूं। लेकिन ऐसा हो नहीं सकता। उन्हें भी तो श्री भगवान की सेवा में जाना है लेकिन अभी नहीं। जब वो समय आएगा तब देखा जाएगा।
अभी के लिए तो मैं उनका प्रेम पा लूं खूब सारा।

आप भी अपने बचपन की याद आपकी दादी के साथ जो हो वो साझा करें।

।।जय श्री हरि।।

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