शांति
मैंने मुट्ठी में बंद कर लिया अपना जहां
मेरा घर मेरी दुनिया, मेरी छत ही मेरा आसमां
धीरे-धीरे टूटने लगे हैं पिंजरों के सभी ढकोसले
ना कोई बंदिश, ना कोई रोक, ना कोई टोक
सादगी शांति दूत बन, लाया मंत्र नवक्रांति का
ना आडंबर, ना मेकअप, ना बालों को काटने का झमेला
बस सब्र और शांति हमारी नई स्वच्छंदता
इशारा है ये धरती मां का इसे समझ ले
जितने आडंबर हमने पाले जीवन में
प्रकृति ने अपने रौद्र हवन कुंड में
आहुति देकर किया- स्वाहा स्वाहा।
इस नए परिवेश में नतमस्तक हो जीना हमने स्वीकार किया
बारंबार प्रणाम कर, बढ़ रही उसकी रज़ा में
मेरा घर मेरा स्वर्ग, अंदर शांत… बाहर शांत
ओम ! शांति, शांति, शांति ।
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