“प्यार“
‘प्यार’ झलक जाता है अक्सर आखों में बनकर आसूं..
कभी चिंता के, कभी अपनेपन के तो कभी अभाव के
आसूं..
समझ नहीं आता ये कैसा रिश्ता है प्यार, आंसूओं और
दिल का..!??
प्यार ना मिले तो दिल दुखता है..
और ये दर्द आंखों से बह जाता है!
दिल का अभाव किसको बताऊं..?
मन की बातें आखिर किसको सुनाऊं..!?
ये प्यार, दिल और आंसूओं की पहेली अब कैसे
सुलझाऊं..??
क्यूं किसी की तकलीफ़ देखकर
दिल में दर्द होता है,
ये क्या रिश्ता क्या बंधन है जो
आपस में प्यार से बंधता है,
ये बातें कभी झूठी सी लगने लगती
है,
पर दिल का दर्द और एहसास तो
सच्चे ही होते है…..
अब जिंदगी के ऐसे मोड़ पर हूं,
जहां ना अपनों से प्यार पाया जाता है… और
ना ही जताया जाता है..!!
दिल का दर्द अब कैसे छुपाऊं..?
उसे आंखों में आने से कैसे बचाऊं..!??
बिन निभाए प्यार और रिश्तों पर यकीन
करना भी मुश्किल है..
लेकिन अब हालात ऐसे हैं कि यकीन करना
भी नहीं है…
मुझे विश्वास है कि आप सब को मेरे यह एहसास और कविता पसंद आएगी…. क्योंकि यह सब आप सब से भी कहीं ना कहीं जुड़ा हुआ है!
आप सब का बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🙏
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